Tuesday, August 28, 2018

两会冷冻柴静纪录片和雾霾话题

刚刚轰动中国互联网的一部雾霾纪录片,在两会期间被“冷冻”。自2月28日发布以来,柴静的雾霾深度调查纪录片《穹顶之下》吸引了超过3亿的点击率,然而,两会召开后,该视频在优酷网和人民网已无法观看,网页显示出错及无法播放的信息。
专访其制作者柴静的人民网,已经撤销了相关报道。
两会前,中国舆论普遍预估,几亿点击量的雾霾纪录片,将使“雾霾话题”成为本届中国两会最热门的话题之一。凤凰卫视评论员曹景行甚至在其微博中建议,让每个委员、代表、列席官员看一遍。

但富有戏剧性的是,部分该纪录片的报道,已经在网络和微信(wechat)中销声匿迹。“雾霾话题”也没有预期那么热,媒体雾霾报道降温,总理政府工作报告也淡化雾霾。

对比中国总理李克强的两个政府报告发现,2014年,李克强两次提雾霾且措辞严厉,第一处是:“雾霾天气范围扩大,环境污染矛盾突出,是大自然向粗放发展方式亮起的红灯……”另外一是,“以雾霾频发的特大城市和区域为重点……深入实施大气污染防治行动计划……”

2015年,李克强在政府工作报告中仅一次提到雾霾,“加强雾霾治理,淘汰黄标车和老旧车指标超额完成。”

传闻宣传部门要求两会期间,各级各类媒体不报道纪录片《穹顶之下》及作者柴静,并要求加强论坛、博客、微博、微信、新闻客户端等的管理。

在《穹顶之下》片尾,柴静打出了一个长长的致谢名单,包括部分政府工作人员。但现在,名单上有被致谢的人员表示压力很大,“这会让外界以为我们在支持柴静”,一位不愿具名的人士说。

中外对话记者发现,两会期间,截至3月6日,中央电视台、人民网等主流媒体没有涉及这部纪录片及其作者柴静的报道,也很少报道雾霾问题。

一位不方便具名的环境专家告诉中外对话,柴静这部片子已经做的很好,任何一个人做事都不可能百分之百正确。雾霾纪录片之所以被冷冻,可能是因为这部片子击中了环境污染的要害,戳中了利益集团的利益。造成环境污染的根源在于执法不严,不能执法在于利益方的阻挠。“但是,要治理环境,就一定要严格执法,这是新任环保部长陈吉宁必须面对的问题,否则环境治理打不开局面。” 他说。

柴静将矛头指向能源部门,认为雾霾问题很大程度上是能源问题,根源在于垄断。

中国石油天然气集团公司质量与标准管理部副总工程师万战翔撰文反击,他批评柴静说:“也许是她脑力不够,也许是她知识不够,也许是她思想不够,反正并无什么真知灼见,其实都是几十年前欧美国家成功治理污染的现成理念和方法。”

万战翔认为,一句话就可概括中国雾霾之殇:每个老百姓都是雾霾的制造者,但是,管控、治理、消除雾霾,责任在政府!世界各国治理雾霾的成功之路也证明,责任在政府!

环境保护近年来已经成为中国人最关注的问题。2014年,中青舆情监测室发布监测报告称:环境治理超过反腐成为第一民意热点,雾霾又成为焦点之焦点。但今年该监测室没有发布类似报告。

Friday, August 17, 2018

औरैया : 'मुस्लिम बस्ती में जो भी लड़का दिखा, पुलिस उठा ले जा रही है'

उत्तर प्रदेश के औरैया ज़िले के कुदरकोट गांव में चारों तरफ़ सन्नाटा पसरा हुआ है. गांव के भीतर घुसते ही कुछ दूरी पर बाईं ओर पुलिस चौकी है जबकि दाहिनी ओर गांव की आबादी.
पुलिस चौकी से महज़ कुछ सौ मीटर की दूरी पर ही वो प्राचीन मंदिर है जहां के दो साधुओं की बड़ी बेरहमी से हत्या कर दी गई थी जबकि हमले में घायल एक अभी भी ज़िंदगी और मौत से संघर्ष कर रहा है.
गांव वालों का साफ़ कहना है कि इन साधुओं को गोकशी का विरोध करना भारी पड़ गया. वहां मौजूद कई लोग एक आवाज़ में कहने लगते हैं, "किसी ने देखा तो नहीं है लेकिन मंदिर की तरफ़ कुछ लोग अक़्सर गाय ले जाकर काटते थे. तीनों साधुओं ने कई बार पुलिस से भी शिकायत की थी. उनकी और किसी से दुश्मनी तो थी नहीं, फिर इतनी बेदर्दी से उन्हें कोई क्यों मारेगा?"
कुदरकोट गांव में भयानक नाथ मंदिर गांव के बिल्कुल किनारे पर है. मंदिर काफ़ी प्राचीन है और कुदरकोट के अलावा दूसरे गांव के लोग भी इस मंदिर में दर्शन करने आते हैं.
फ़िलहाल मंदिर में पुलिस ने ताला लगवा दिया है और घटना के बाद से मंदिर परिसर में क़रीब आधा दर्जन पुलिस वाले चौबीस घंटे ड्यूटी दे रहे हैं. मंदिर परिसर में पुजारियों के ज़रूरी सामान इस तरह बिखरे पड़े हैं कि घटना की बर्बरता की कहानी दो दिन बाद भी बयां हो रही है.
मंदिर कुछ ढलान पर है जबकि उसके सामने ऊंचाई पर ग्राम समाज की ऊबड़-खाबड़ काफ़ी ज़्यादा खाली जगह है. गांव की आबादी यहां से क़रीब एक किलोमीटर दूर है. गांव के लोगों के मुताबिक़ 'गोकशी करने वालों के लिए ये जगह काफ़ी मुफ़ीद है क्योंकि आमतौर पर यहां कोई आता-जाता नहीं है.'
वहीं गांव के प्रधान रवींद्र पाल कहते हैं कि साधुओं के अलावा गांव के लोग भी इस बात का अक़्सर विरोध करते थे लेकिन कोई सुनता नहीं था, "कितनी बार पुलिस से शिकायत की गई, गायों को पकड़वाया भी हम लोगों ने, लेकिन उस समय पुलिस जिन्हें पकड़ती भी थी, बाद में छोड़ देती थी. इसी से इन लोगों का हौसला और बढ़ता गया."
पुलिस चौकी से दाहिनी ओर का रास्ता गांव की मुख्य आबादी की ओर जाता है. क़रीब पांच हज़ार की आबादी वाले इस गांव में मुस्लिमों की आबादी क़रीब डेढ़ हज़ार है. चूंकि पुलिस भी पुजारियों की हत्या में गोकशी करने वालों पर ही ज़्यादा संदेह कर रही है, इसलिए गांव के अन्य लोगों के अलावा उनसे भी पूछताछ की जा रही है.
शायद इसी वजह से मुस्लिम समुदाय के लोगों में थोड़ा डर भी है. कई घरों पर ताले पड़े हैं तो कुछ के भीतर सिर्फ़ महिलाएं ही दिख रही हैं, पुरुष नहीं. मस्जिद के सामने एक घर के बाहर कई पुलिस वाले बैठे थे और दरवाज़े पर सलमा नाम की एक महिला गोद में छोटे बच्चे को लेकर रो रही थी. थोड़ी देर पहले ही उसके पति जुनैद को पुलिस वाले पूछताछ के लिए उठा ले गए थे.
सलमा बताने लगी, "मेरे पति रेहड़ी लगाते हैं. जैसे ही घर पर आए, पुलिस वाले खींचकर ले जाने लगे. जब तक हम बाहर निकलकर आए, पुलिस वाले उन्हें ले जा चुके थे. बाहर बैठे पुलिस वालों से पूछा तो बोले कि हमें नहीं पता क्यों ले गए हैं."
यही हाल ज़्यादातर घरों का था. कई मुस्लिम महिलाएं बाहर निकल आईं और इसी तरह के आरोप लगाने लगीं. नफ़ीसा नाम की एक लड़की बोली, "मेरे तीनों भाइयों को सुबह पुलिस उठा ले गई. बोली कि पूछताछ करके छोड़ देंगे लेकिन पांच घंटे हो गए और अभी तक वो लोग नहीं आए. यहां जितने भी लड़कों को देख रहे हैं पुलिस वाले, सबको उठा ले जा रहे हैं. वहां मार-पीट भी रहे हैं."
लोगों ने बताया कि डर के मारे कई लड़के और कुछ महिलाएं भी गांव से चले गए हैं. गांव के प्रधान रवींद्र पाल भी इस बात की पुष्टि करते हैं, "कई लोग सुबह से हमारे पास ये शिकायत लेकर आ रहे हैं कि पुलिस वाले ज़बरन चौकी पर ले जा रहे हैं. हमने कहा कि डटकर सामना करो, यदि ग़लत नहीं हो तो पुलिस वाले कुछ नहीं करेंगे. उन्हें पूछताछ करने दो. लेकिन कुछ लोग तो डर के मारे यहीं से बस पकड़कर कहीं चले गए. कुछ औरतें सुबह आई थीं. वे बताने लगीं कि पुलिस वाले बाहर तक निकलने नहीं दे रहे हैं."
वहीं इस मामले में मुख्यमंत्री के अल्टीमेटम के बावजूद अभी तक कोई गिरफ़्तारी नहीं हुई है. पुलिस अधिकारियों का कहना है कि हिरासत में लेकर कई लोगों से पूछताछ की जा रही है और जल्द ही गिरफ़्तारी भी हो जाएगी. मुस्लिम युवकों को प्रताड़ित करने और उन्हें ज़बरन चौकी पर लाने के आरोपों को पुलिस अधिकारी सीधे तौर पर नकारते हैं.
औरैया के पुलिस अधीक्षक नागेश्वर सिंह ने बीबीसी को बताया, "पूछताछ के लिए पुलिस किसी को भी बुला सकती है, ये हमारा विधिक दायित्व और अधिकार है. कई लोगों से पूछताछ हुई है लेकिन जिनके ख़िलाफ़ साक्ष्य होंगे, उन्हें गिरफ़्तार करेंगे. बाकी लोग छोड़ दिए गए हैं. गांव से भागने की बात भी सही है. जो संदिग्ध हैं, वो भागे हुए हैं, उन्हें पकड़ने के लिए हमने टीम लगा रखी है. हम दोषियों की गिरफ़्तारी के बहुत नज़दीक हैं."
कुदरकोट पुलिस चौकी पर बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी, पुलिस अधिकारी और गले में गेरुआ पट्टा डाले कई गोसेवक बैठे थे. दूसरी ओर वो तीन गायें भी बँधी थीं जिनके बारे में पुलिस वालों का दावा था कि उन्हें गोकशी करने वालों से बरामद किया है. वहां मौजूद औरैया के एडिशनल पुलिस अधीक्षक एमके सक्सेना तमाम सवालों का संक्षिप्त जवाब देते हैं, "जल्द ही दोषी गिरफ़्त में आ जाएंगे."
लखनऊ से घटना को कवर करने पहुंचे एक अन्य पत्रकार ने जब वहां बैठे पुलिस अधिकारियों से पुलिस चौकी परिसर में बैठे गोसेवकों के बारे में पूछा तो अधिकारियों ने हल्की सी मुस्कान के रूप में जवाब दिया. गोसेवक वहां क्यों बैठे हैं, इसका कोई साफ़ जवाब नहीं मिल सका.
बुधवार सुबह मंदिर परिसर में सो रहे तीन साधुओं पर हमला हुआ था, जिसमें दो साधुओं की तत्काल मौत हो गई थी जबकि गंभीर रूप से घायल एक अन्य साधु का अभी भी सैफ़ई मेडिकल कॉलेज में इलाज चल रहा है. ये तीनों साधु आस-पास के गांवों के ही रहने वाले थे और मंदिर के पुजारी थे.
साधुओं की हत्या के विरोध में बिधूना में आगज़नी और पथराव भी हुआ था. पुलिस ने कुदरकोट गांव को छावनी में भले ही तब्दील कर रखा है लेकिन साधुओं की हत्या में अब तक कोई गिरफ़्तारी न होने से लोगों में जहां गुस्सा है, वहीं जिन घरों से कथित तौर पर संदिग्धों की तलाश हो रही है, उनमें ख़ौफ़ बना हुआ है.